दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभानेवाला
वही अंदाज़ है ज़ालिम का ज़मानेवाला
अब इसे लोग समझते हैं गिरफ्तार मेरा
सख्त नदीम है मुझे दाम में लानेवाला
क्या कहें कितने मरासिम थे हमारे इस से
वो जो इक शख्स है मूँह फेर के जानेवाला
तेरे होते हुए आ जाती थी सारी दुनिया
आज तनहा हूँ तो कोई नहीं आनेवाला
मुन्तजिर किस का हूँ टूटी हुई दहलीज़ पे में
कौन आयेगा यहाँ कौन है आनेवाला
में ने देखा है बहारों में चमन को जलाते
है कोई ख़्वाब की ताबीर बतानेवाला
क्या खबर थी जो मेरी जान में घुला है इतना
है वही मुझ को सर-ए-दार भी लाने वाला
तुम तक़ल्लुफ़ को भी इखलास समझते हो
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलानेवाला.........
No comments:
Post a Comment